नाबार्ड महिला स्व सहायता समूह को बचत करने की ट्रेनिंग भी दे रहा है। उन्हें बताया जाता है कि कैसे हम अपने खर्च पर नियंत्रण कर बचत कर सकते हैं। आपस में समूह बनाकर बचत पैसे को जमा कर ब्याज और अन्य फायदे ले सकते हैं। महिलाओं को वित्तीय मैनेजमेंट पर आधारित एक किताब भी दिया गया है। जिसमें वे हर महीने का हिसाब रख सकते हैं कि किस चीज पर कितना खर्च हो रहा है। बैंक द्वारा जो भी कर्जा महिलाओं को दिया जाता है, उन्हें 6 महीने में चुकाना रहता है। कर्ज चुका देने के बाद उन्हें उससे भी ज्यादा का कर्ज दिया जाता है। समूह की महिलाओं को पहले सेठ साहूकारों से कर्जा लेकर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है। लेकिन नाबार्ड के जरिए समूह को 10% ब्याज पर कर्ज दिया जाता है। इस प्राप्त पैसे को समूह के सदस्य आपस में बांटते हैं और उन पैसों को वापस 15 से 20% ब्याज में समूह में जमा किया जाता है इस तरीके से ब्याज में हुए अतिरिक्त मुनाफे को समूह अपने पास रखकर बैंक का जो पैसा देना है, वह खाते जमा करती है।
स्वयं सहायता समूह क्या है ? swayam sahyata samuh kya hai|
गाँव में सामाजिकता पर गौर करें तो पाते हैं कि किसी भी कार्य में मदद लेने और देने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जैसे “ सामुदायिकता की भावना” आदिवासी समाज की सबसे बड़ी विशेषता है और यह इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलुओं के तार से भी जुडी हुई है। परन्तु आज के पैसा-बाजार प्रतियोगिता पूर्ण युग में में इसका फैलाव, विकास की प्रक्रिया में सुसंगठित होकर नहीं किया गया। इसके बावजूद सामुदायिकता गरीब व सामाजिक तौर से पिछड़े वर्गों में आज भी किसी- न-किसी रूप में विद्यमान है।
स्वयं सहायता समूह का इतिहास देखने पर यह पता चलता है कि मुख्य रूप से इसकी शुरुआत देश की प्रतिष्ठित स्वैछिक संस्थाएं जैसे सेल्फ एम्पलाइड वीमेन एशोसिएशन, (SEWA) अहमदाबाद, मयराडा, बंगलौर आदि के माध्यम से हुई थी। मयराडा, बंगलौर के इतिहास को देखा जाये तो इस संस्था ने वर्ष 1968 से ही सामाजिक कार्य के प्रति अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। शुरुआत में मयराडा ने मुख्य रूप से चीन युद्ध के पश्चात् तिब्बत से आये तिब्बतियों को पुनर्स्थापित करने का कार्य शुरू किया। दूसरे दौर में इस प्रकार वर्ष 2000 तक लाखों लोगों को सुविधाएँ देकर उनके जीवन स्तर को उठाने का लक्ष्य बनाया।
0 Comments